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भाग्य वर्धक वस्तुयें

Shilpjyoti by Astrobhadauria
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गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण मे कहा है कि-“धर्म से विरति,योग से ग्याना,ग्यान मोक्ष प्रद वेद बखाना”,यानी जब धर्म और धार्मिक कारणो से अपने को सन्लग्न किया जाता है तो विरति यानी कार्य करने की सही और गलत बाते प्राप्त होती है जब कार्य किया जाता है तो योग पैदा होता है वह योग धन के लिये धर्म के लिये काम यानी स्त्री पुत्र आदि के सुख के लिये जायदाद और अपनी हैसियत को बढाने के लिये अपना कार्य शुरु कर देता है,जैसे योग से धर्म और इस प्रकार के साधनो का ग्रहण किया जाता है अक्समात ही रास्ते निकलने लगते है,जब मन की शांति के रास्ते धन आदि से बन जाते है तो व्यक्ति के अन्दर मानसिक शांति इसी बात की प्राप्त हो जाती है कि अमुक काम को करने के लिये अमुक साधन का प्रयोग किया गया था और वह किया जाने वाला प्रयोग सफ़ल हो गया।

हर वस्तु इस धरती पर विद्यमान है इसी मिट्टी के अन्दर गन्ना के रूप मे मिठाई है तो धतूरे के रूप मे जहर भी है इस धरती के अन्दर इस भावना को पैदा कर लिया जाय वही भावना पैदा होनी शुरु हो जाती है ध्यान केवल भावना के लिये किये जाने वाले प्रयास यानी अन्य भूतो का प्रयोग करना होता है। एक किसान जब फ़सल को पैदा करता है तो उसके अन्दर जमीन को साधन देने के बाद यह देखना जरूरी होता है कि अमुक जमीन पर अमुक समय पर सर्दी गर्मी बरसात के अनुसार अमुक फ़सल को पैदा किया जा सकता है और जैसे ही उसे जानकारी होती है वह समय का प्रयोग करने के बाद फ़सल का बोने और उसे देख रेख करने का उपक्रम शुरु कर देता है,उसकी मेहनत और भावना काम आजाती है फ़सल पक कर जब काटी जाती है तो उस किसान को अपनी भावना के अनुसार फ़सल का मिलना उसकी मानसिक शांति को प्रदान करता है अगर उसके अन्दर कोई भावना गलत हो जाती है या वह अपनी ज्ञान की सीमा को विस्तृत नही करता है अथवा उसे समय और सीमा का भान नही होता है तो वह फ़सल को लाख कोशिश करने के बाद भी पैदा नही कर पाता है। जैसे चावल के लिये बरसात की ऋतु और गर्मी का मौसम होना जरूरी है इस मौसम मे ही चावल की पैदाइस हो सकती है अगर उसी चावल को सर्दी वाली बरसात मे बो दिया जाये तो वह समय पर जमेगा और अन्कुरित हो कर समाप्त हो जायेगा लेकिन फ़ल चावल को नही पैदा करेगा,इसी प्रकार से प्रयास करने के लिये वह अपने साधनो का प्रयोग करता है वही साधन उसके लिये हितकारी तभी बनते है जब उसके पास खुद के भाग्य को जानने का तरीका होता है वह अपने भाग्य से ही अपने कार्यों को सफ़ल और असफ़ल करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता है।

एक व्यवसाय करने वाला जानता है कि अमुक वस्तु की कीमत अमुक समय पर बढ जायेंगी वह वस्तु को समय पर इकट्ठा कर लेता है और जैसे ही बाजार मे उस वस्तु की कमी होती है वह वस्तु को बाजार मे बेचना शुरु कर देता है उसे लाभ भी होता है और उसे मानसिक संतुष्टि भी मिलती है,अगर उसे इस बात का ज्ञान नही है तो वह वस्तु को महंगे भाव मे खरीद कर अगर सस्ते भाव मे बेचने का कारण बनाता है तो वह घाटे मे भी जाता है और मानसिक अशांति को भी पैदा करता है। इन सबके लिये समय पर पता चलने के लिये ही भाग्य से जुडी वस्तुओं को प्रयोग मे लाया जाता है.

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