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लाल दिखे मीठे लगे,बीज तोड़ दे दांत,एक जगह जम कर रहे गीधड कुत्ता खात.
रेगिस्तानी इलाके में पथरीले इलाके में बिना पानी के इलाके में बीहड़ बंजर स्थानों में बेर की उत्पत्ति होती है,राहू के पेड़ो में बेर के पेड़ की गिनती की जाती है.लाखो कांटे एक पेड़ के अन्दर होते है अपनी आतंरिक सुरक्षा के लिए इन कांटो का निर्माण किया जाता है.उन कांटो को हरे पत्तो के बीच में छुपा कर रखा जाता है जैसे ही पेड़ को छूने की कोशिश करो,एक साथ सैकड़ो कांटे शरीर को जख्मी बना देते है.बेर का पेड़ संगठित होकर रहता है,अपने पत्तो की सदने वाली खाद से ही अपने लिए पोषक तत्वों को इकट्ठा करता है और कांटो से रात की नमी को सोखता है.हल्की फुल्की बारिस से भी बेर का पेड़ ज़िंदा बना रहता है.बीज को कोइ तोड़ कर खाना चाहे तो उसे कैसे भी जख्मी होना ही पडेगा अगर वही बीज पकाकर सूख कर नीचे गिर जाए तो उन्हें कोइ भी खाकर अपनी स्वाद और भूख वाली पीड़ा को शांत कर सकता है.संत स्वभाव के पेड़ो की गिनती में आम के पेड़ को गिना जाता है और राक्षसी स्वभाव वाले पेड़ में बेर की गिनती आती है,आम के पेड़ झुण्ड में नहीं होते है दूर दूर जाकर अपने फलो को बिना किसी कांटो के मुलायमता से जीवो को प्रदान करते है,लेकिन बेर का पेड़ इकट्ठा ही रहता है,वह आसानी से अपने फलो को दूसरो को नहीं देता है,उसके बीज इतने कठोर होते है की वह अगर धोखे से दांत के नीचे आजाये तो दांत टूटने में देर नहीं लगेगी जबकि आम के फल को चूसा जाए तो वह होंठो और जीभ की सहायता से ही अपने रस को दे देता है.बेर के पेड़ अपने फलो को सर्दी में पैदा करते है,और आम के पेड़ बसंत ऋतू में पैदा करते है,जो सर्दी से ठिठुर कर पैदा करने वाला होता है उसके बीज कठोर तो होंगे ही और जो मस्ती के मौसम में पैदा करने वाला होगा उसके बीज मुलायम भी होंगे और लोगो के चहेते भी होंगे.बेर के पेड़ की बराबरी करने वाले अपनी भीड़ को इकट्ठा करने के बाद दंगा फसाद लूट पाट जबरदस्ती करने के बाद अपनी योजनाओं को सफल करना मानते है,अपने डर को पैदा करने वाले और अपने भय से अपने काम को करवाने वाले मिलते है,उनकी संतान का अधिकतर पैदा होना बसंत ऋतू के शुरू में होना माना जाता है,लेकिन जो शांत प्रकृति के होते है वे अकेले रहकर ही अपने प्रभाव को देने वाले होते है उनकी संतान बरसात के शुरू में ही पैदा होती है.यह प्रकृति का खेल निराला है.जो दूसरो को देख कर दुखी होते है उनसे मिलाने की कोशिश करो तो वे अपनी प्रकृति से अपने शूलो से घायल करने की कोशिश करते है लेकिन जो अकेले रहकर भला करना जानते है वह गर्मी की तपिस में अपनी शीतल छाया को देकर अपने मीठे फलो से मनुहार करने में नहीं चूकते है.जलचर थलचर नभचर नाना,जे जड़ चेतन जीव जहाना,तुलसी दास ने रामचरित मानस में अपनी इस चौपाई में सभी प्रकार के जीवो की तुलना की है,पानी में विचरण करने वाले जीव चाहे जमीन पर विचरण करने वाले और जम कर खड़े रहने वाले जीव आकाश में उड़ने वाले जीव,सभी की एक सी आदत नहीं होती है.कई अकेले रहकर भी हंस बनाकर सहायता करने वाले होते है,कई झुण्ड में रहकर भी गिद्धों की तरह से मरा हुआ तक खा जाने वाले होते है,वही हाल पेड़ पौधों में होता है वही हाल मनुष्यों में होता है.
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