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लव से तलाक तक का सफ़र

Shilpjyoti by Astrobhadauria
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कहा जाता है की बेटा दादा पर और बेटी नानी पर जाती है.जब किसी के बेटे के बारे में जानना हो तो दादा के बारे में जानकारी करना जरूरी होता है.दादा का चाल चलन रीति व्यवहार समाज में स्थान आदि के बारे में पता करने पर दादा की आदतों का पता चल जाता है उन्ही आदतों को आज के समाज रीति व्यवहार से मिलान करने के बाद बेटे की नीतियों के बारे में अपनी जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है.उसी प्रकार से नानी के बारे में पता करने के बाद बेटी की सभी बाते मिलाई जा सकती है.लेकिन यह बाते वहां मिलाना दिक्कत देने वाला हो सकता है जहां गुप्त रिश्ते किसी के साथ रहे हो,और उन रिस्तो से अगर कोइ कारण खोजा जाएगा तो अरंड के पेड़ पर बैंगन लटकाने की बात ही होगी.भारत की स्वतन्त्रता के बाद चाहे भले ही समाज में स्वतन्त्रता नहीं दिखाई देती हो,भले ही बोले जाने पर लिखे जाने पर जेल की हवा खिलवा दी जाए लेकिन लव करने की आजादी अब हर जगह पर दिखाई देने लगी है.स्कूल तक तो माता पिता संभाल कर चलने के लिए मजबूर होते है और जैसे ही स्कूल की सीमा ख़त्म हुयी और कालेज का जीवन शुरू हुआ फिर तो जनरेशन गेप का किस्सा अकसमात ही कालेज के एक आध महीने से ही दिखाई देना शुरू हो जाता है,युवा वर्ग की सोच को अगर पुराने लोगो की सोच से मिला लिया जाए तो उनमे जमीन आसमान का अंतर निकलता है,या तो पुराने लोगो को दकियानूसी बाते करने के कारण या संकुचित दिमाग का कह कर या बुढिया-पुराण की बाते कह कर शांत कर दिया जाता है,या वे खुद ही चुप चाप टुकुर टुकुर देखते रहते है और मन ही मन यह कह कर अपने को समझाते रहते है,की आज नहीं तो कल जब नई के बाल सामने आजायेंगे तब पता चलेगा की कौन सही कह रहा था और कौन गलत कह रहा था.
आज के आदमी का हाल उस साइकिल की तरह से हो गया जो खरीदी कंपनी की गयी हो और दुर्भाग्य से उस साइकिल को देहाती एरिया में ट्रांसफर कर दिया गया हो.साइकिल का कोइ पार्ट घिस कर या किसी खड्डे में जाकर टूट गया हो तो फिर उसे ठीक करने के लिए जिस प्रकार से गाँव का कारीगर अपने तसले में पड़े सभी नट बोल्ट लगा लगाकर अन्जवाता है की यह काम कर जाएगा या वह काम कर जाएगा,जैसे ही कोइ नट बोल्ट फिट हुआ साइकिल फिर से चलने लगती है.उस साइकिल एक समय में ऐसी हालत हो जाती है की वह फ्रेम से तो कंपनी की दिखाई देती है लेकिन उसके अन्दर जो सामान लगा होता है वह पता नहीं किस किस कंपनी का देशी विदेशी लगा होता है.उस साइकिल की असली पोजीसन को दुबारा से हासिल करने के लिए या तो वापस कंपनी में ले जाया जाए तो कंपनी उसके फ्रेम को छोड़ कर बाकी के सभी पुर्जे बदलने का इतना बिल बता देगी की उस साइकिल को कबाड़े वाले को बेचकर छुटकारा पाने के अलावा और कोइ रास्ता सामने नहीं रहेगा.
कालेज में जाते ही लड़का या लड़की की हालत साइकिल जैसी ही हो जाती है,उसका फ्रेम तो भारतीय होता है लेकिन जैसे ही उसे कालेज की हवा लगती है उसके अंदर उसकी चाल में बदलाव आने लगता है.वह पेंट शर्ट को पहिन कर चलने का प्रयास करते है,भारतीय धुल मिट्टी और साल में छः बार बदलने वाला वातावरण का प्रभाव उस शर्ट पेंट को या तो इस कदर से बरबाद कर देता है की पहिनने वाला न तो भारतीय ही जमता है और न ही वह किसी अन्य देश का निवासी.वही हाल उसकी आवाज में हो जाता है.चिंगम टाफी पीजा बर्गर आदि खाते खाते उसकी जीभ लिपटने लगती है,और वह बोलता तो हिन्दी है लेकिन वह हिन्दी भी नहीं लगती है वह एक प्रकार से अन्ग्रूजचीन्दी बन जाती है यानी अंगरेजी जर्मनी चीनी हिन्दी का सम्मिलित स्वर बन जाता है.अच्छे भले माँ बाप मोम और डेड की पोजीसन में होते है और उनका पूजा पाठ का असर दादी आदि की डाट से बचने के लिए होता जरूर है लेकिन जब वे अपने बाय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड के साथ बाइक पर जा रहे होते है और रास्ते में उन्हें कोइ हनुमान जी का मंदिर मिलता है तो वे उस मंदिर में लाल रंग की हनुमान की मूर्ती को देखकर हाथो का का एक विशेष कोण बनाकर -“हाय! हनु” कहकर निकल जाते है.
वैसे भी देश के आजाद होने के बाद किसी के पास भी फुर्सत नहीं है.हर आदमी की दैनिक क्रिया सुबह के नौ बजे से पहले शुरू नहीं हो पाती है.घर के बाहर दूध वाला धोखे से जल्दी आ गया तो उसकी शामत आजाती है,”क्यों यार नींद खराब करता है”,कहकर दूध तो इसलिए ले लिया जाता है क्योंकि चाय भी चाहिए,कोइ वास्तु मिले न मिले लेकिन चाय जरूर चाहिए,बिना चाय के दो कार्य किसी भी प्रकार से पूरे नहीं हो पायेंगे,एक तो रात का खुमार भी नहीं उतरेगा और दूसरा जागने के बाद आज क्या करना है की सोच भी पैदा नहीं होगी और तीसरा जो मुख्य कारण है बिना चाय का नशा जाए लैट्रिन में भी कुछ नहीं होने वाला.ठण्ड हो या गर्मी रविवार या किसी छुट्टी के दिन शरीर की सफाई हो जाए तो ठीक है नहीं तो केवल ड्राई क्लीनिंग से ही काम चलता रहता है.सुबह से मोबाइल शुरू हो जाते है दाढी बनाते बनाते अगर बोस का फोन आ गया तो दाढी की विशेष कटिंग को फैसन का रूप बनाकर जल्दी से भागना भी पड़ता है,टारगेट को पूरा करने के लिए कौन कौन से और कहाँ कहाँ जाकर झूठ फरेब चालाकी की ताकत नहीं खर्च करना पड़ता है.डेड सुबह को जाते है तो बच्चे जागने से पहले ही स्कूल चले गए होते है और जब डेड रात को आते है तो बच्चे सो रहे होते है.में साहब जब काम पर जाती है तो पति देव सो रहे होते है और जब वे सो रही होती है तो पतिदेव घर आते है,उनीदी आँखों से अगर खाना परोस दिया गया तो ठीक है नहीं तो खाने का होश ही किसी रहता है,दिन भर की गहमा गहमी अफसरों की लताड़ शहर की आवोहवा शरीर को इतना कमजोर कर देती है की बिना वाइन का प्रयोग किये घर में घुसाने का अर्थ है जो थोड़ी बहुत नींद आनी है वह भी नहीं आनी.
पहले बच्चो को माँगने पर फीस और किताबो के खर्चे के साथ जेब खर्च को दिया जाता था,आजकल बैंक के एटीएम का प्रयोग शुरू हो गया है,एक निश्चित खर्चा अपने आप डेड के खाते से या मम के खाते से बच्चे के खाते में चला जाता है और जब भी जरूरत पड़ती है बच्चा बजाय मम डेड से माँगने के सीधे एटीएम का रास्ता देखता है.समय को पास करने के लिए उसके पास कुछ और हो न हो लेकिन एक लेपटाप जरूर होता है वह आसानी से आपने समय को पास करने के लिए लिव चैटिंग करता है और अपने अनुसार डेटिंग भी लेता है,जहां का प्रोग्राम बना होता है वही जाकर निश्चित समय पर मिलना भी हो जाता है और यही लव करने की निशानी मानी जाती है.जैस पहले होली दिवाली तीज त्यौहार को मानाया जाता है वैसे ही आजकल बेलेन्टाइन डे फ्रेंडशिप डे,आदि मनाये जाते है,गुलदस्ते बेचने वाले भी कम चालाक नहीं है,केवल मोबाइल से कहने की देर है,दो गुलाबो के साथ कुछ घास पत्ते सलीके से जमा कर बुके के रूप में निश्चित जगह पर भिजवा देते है,धन का ज़माना है,कुछ भी पलक झपकते हे हो सकता है,अगर भूख लगती है तो कोइ बड़ी बात नहीं है,पुलिस को अगर एक्सीडेंट पर फोन किया जाए तो वह दो घंटे बाद पहुँच सकती है,पीजा लेकर आने वाला निश्चित समय पर पीजा नहीं पहुचा पाता है तो वह फ्री में पीजा भी खिला जाता है और धन्यवाद भी दे जाता है.
शहरों में नगर पालिकाए आदि बहुत ही इन बातो का ख्याल रखती है,कुछ झाड़ी या पेड़ इस तरीके से लगाए जाते है की नए बनाने वाले जोड़े आराम से अपनी गुटरगूं कर सके,समुद्रो के किनारे और मंदिरों के बाहर किसी की यादगार के पास ऐतिहासिक भवन के आसपास ऐसे ही लोग आसानी से मिल जाते है.कुछ नहीं तो गाडी तो जिंदाबाद ही होती है,गाडी का बोनट ऊपर उठा हुआ है,काले रंग के सीसे चढ़े हुए है,बाहर इंजन ठंडा हो रहा है अन्दर मस्ती गर्म हो रही है.यह लव करने का सबसे बढ़िया कारण आजकल भारत के शहरों में दिखाई देने लगा है.हकीकत में शादी विवाह की साईट अखबार में निकालने वाले विज्ञापन आदि इन्ही बातो का ख्याल रखने के बाद बनाए जाते है साथ ही कालेज की पढाई और दूर दूरांत में शिक्षा की संस्थाए लव करने के लिए अपनी पूरी योजना से ही अपनी गति विधिया कायम रखकर चलने वाली होती है तो वह संस्था बड़े आराम से चलाती है,और नाम भी कमाती है.कारण वहां से दो बाते पूरी होती है एक तो माँ बाप को बनाकर अनाप सनाप धन का खर्चा दूसरा अपने अपने लिए जीवन साथी का चुनाव करना,कालेज की शिक्षा पूरी होते ही कुछ दिन तो घर में शांत वातावरण का होना जरूरी है,केवल मोबाइल की बैटरी का जरूर ख्याल रखना पड़ता है.कुछ दिन बाद घर वालो को अपने आप ही पता चल जाता है की अब कुछ होने वाला है,लेकिन कहने की किसी की हिम्मत नहीं होती है,बस इंतज़ार रहता है की कब इस बात की घोषणा की जायेगी की अमुक तारीख को अमुक स्थान पर मैरिज होनी है,सब कुछ पॅकेज में मिलता है,पहले लड़की के माता पिता को मेहनत करने के बाद शादी का हाल केटरिंग की सुविधा दहेज़ का सामान खरीदना पड़ता था लेकिन आज यह सब कुछ नहीं करना पड़ता है केवल पॅकेज को देने के बाद लडके वाला अपने आप सब कुछ कर लेता है केवल लड़की अपने घर वालो के साथ किसी होटल या बंगला में रुक जाती है,और शादी का फंक्सन ऐसे ही हो जाता है जैसे किसी को दिखावा करने के लिए सजा धजा कर बैठा दिया जाता है मित्र दोस्त आदि आते है अपने अपने गिफ्ट पैक दे जाते है,खुला खाना होता है,वेज और नान वेज का ध्यान रखकर वार आदि का इंतजाम कर दिया जाता है,जहां रात के बारह बजे बहुत ही गहमा गहमी होती है सुबह को सीपर के अलावा और कोइ यह भी बताने वाला नहीं होता है की रात को हो हल्ला करने वाले सुबह को कहाँ चले गए.
बहू घर जाती है तीसरे दिन ही कोइ टूर का पॅकेज बनाता है,जो प्रीप्लान होता है,दो चार दिन होटल आदि में सैर करने के बाद वापस आते है फिर गृहस्थ धर्म की बाते की जाती है,दोनों पति पत्नी अपने अपने काम में व्यस्त हो जाते है,कुछ दिनों में पति पत्नी के प्रति कनफ्यूजन बनाता है और दो चार दिन बोल चाल बंद रहती है लड़की अपने सूट केश में कपडे आदि रखती है और अपने घर या किसी रहने वाले स्थान में चली जाती है,फिर संदेशे के रूप में कोइ पुलिस वाला आता है अमुक न्यायालय में जाना है अमुक थाणे में जाना है,या तो समझौता हो जाता है और जो दिया गया है उसका अधिक हिस्सा लेकर देकर विदाई ले ली जाती है अथवा कोइ अधिक लेने के चक्कर में अपने को कोर्ट कचहरी में ही घसीटता रहता है उधर उनकी दिन चर्या दोस्तों में कटने लगती है.तलाक हो जाती है कोर्ट डिक्री दे देता है दुबारा से मैरिज साईट पर फोटो बायोडाटा अपलोड कर दिया जाता है,और फिर से वही सब जो पीछे होता है किया जाने लगता है.
लव करने वाली शादी और यूरिया खाद इनका भरोसा नहीं होता है,लव करने वाली शादी पता नहीं कब टूट जाए और यूरिया खाद का पता नहीं कब फसल को सुखा दे.दोनों के अन्दर ही पानी की अधिक जरूरत पड़ती है,अगर लव वाली शादी में अपने पास पानी यानी धन है तो वह बड़े आराम से चलाती रहती है उस शादी के बाद कोइ बच्चा हो किसी का बच्चा हो कैसे भी बच्चा हो किसी दोस्त के के रहा जाए या किसी के साथ घूमता हुआ देख लिया जाए,कोइ तकलीफ नहीं है तो शादी चलाती रहती है,वैसे ही खेत में यूरिया खाद डालने के बाद अगर खेत में पानी है तो खेत की फसल ज़िंदा रह सकती है,फिर उस खेत में बथुआ हो घास हो जई हो उसका ध्यान किये बिना खेत को रखा जाए तो फसल हो भी जाती है या खरपतवारो के बीज ही अधिक होते है.
वैसे लव वाली शादी में थानेदार की भी मौज होती है और वकीलों की भी मौज होती है जो जितनी अच्छी कहानी को बनाना जानता है और मीन से मेख निकालने में माहिर है वही सही थानेदार और वकील की उपाधि में गिना जाने लगता है,लव ख़त्म होने के बाद थानेदार अगर लडके वालो को बंद करना जनता है तो वह कड़क थानेदार के रूप में जाना जाता है और वकील अगर लड़की के ऊपर होने वाले अत्याचार को अधिक बखान करना जानता है और लडके वालो से अच्छा पैसा वन टाइम मेंटीनेंस के रूप में लेना जानता है तो वह सही वकील माना जता है.जैसे गाडी एक्सीडेंट के बाद खराब हो जाती है तो बीमा कंपनी गाडी का पैसा दे देती है,और गाडी का मामूली सा एक्सीडेंट हुआ और थानेदार वकील आदि से मिलकर अगर सही रिपोर्ट बनवा ली जाए तो बीमा कंपनी हो सकता है नहीं गाडी का पैसा पूरा ही दे दे और बीमा कंपनी से संथ गाँठ करने के बाद उसी गाडी को लेकर चला लिया जाए,बाकी की रकम को अन्य खर्चो में शामिल कर लिया जाए,उसी प्रकार से कई लोग इसी बात की घात में रहते है की कौन सा लड़का किस बिरादरी में अधिक नाम कमा रहा है और जो नाम कमाने वाला होगा वह अपनी परिवार मर्यादा और इज्जत को बहुत डरेगा वह अगर लव की चाल में फंस गया तो मजे ही मजे है,वह अपनी जायदाद को भी आधा देगा सरकारी नौकरी में है तो आधी तनखाह भी आयेगी.यही बात अगर कोइ धनी लड़की है और चालाक लडके के चक्कर में आ गयी तो उसके माता पिता के पास कितनी ताकत है यह तो लव करने के बाद ही पता चलाती है,कितना धन लड़की अपनी मानसिक स्थिति को अपनी मान से रो रो कर कहती है और कितनी अच्छी तरह से माँ लड़की के बाप से बताने की हिम्मत रखती है और यह भी बात बाप के ऊपर तब और निर्भर करती है की उसके अन्दर कितना पानी है.
(जो लव मैरिज से डरा नहीं,जिसे तलाक से प्यार नहीं,वह इंसान नहीं बस पत्थर जिसे किसी से प्यार नहीं)

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