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ग्राम सहन का नाम चौहानी में मसहूर है,शहर से दूर,क़ानून से दूर,सभ्यता से बहुत दूर,हर कोइ अपने अनुसार कार्य करने के लिए जाना जाता है किसी को किसी की दुःख दर्द से लेना देना नहीं है,केवल अपनापन वही दिखाई देता है जहां चार लोग इकट्ठे हो जाए और किसी एक की शामत लानी है तो देखो कितना अपनापन मिलता है कितना अच्छा क़ानून दिखाई देता है.घात लगाना,और काम करके चले जाना,किसी को कानो काम खबर नहीं हो,की क्या किसने कब किया.
शिक्षा के लिए गाँव में ही आठवी तक का स्कूल है स्कूल के मास्टर है दाढी वाले नेता जी.सफ़ेद कुर्ता सफ़ेद धोती जो लूंगी की माफिक लपेटी हुयी होती है,लम्बी दाढी,देखने से ही बच्चे सहम जाए,ऐसा उनका व्यवहार,ऊपर से गाँव की हाथ की निकाली गयी देशी शराब की बदबू उनके मुहं से हमेशा ही मिलेगी,उसके अलावा और कुछ मिलेगा तो मैनपुरी की बनी हुयी जग प्रसिद्द कपूरी तम्बाकू की बदबू.घर का काम काज निपटा कर आना,जो आ गए है उनकी हाजिरी लगा देना और आराम से कुर्सी पर बैठ जाना किसी मजबूत चेले से पैर दबबाना और पड़े रहना,उनका एक ही नारा है कि उनका पढ़ाया गया कभी चपरासी नहीं बना है,इसलिए पढ़ना है तो पढो नहीं तो घर जाकर कंचे की गोलियों की पीलिया खेलो.
गाँव के ही प्रताप सिंह अब भगवान को प्यारे हो गए है,लम्बी मूंछे चबूतरे पर उनका आसन,जो भी गाँव का सामने आता उसी से हाल चाल लेना और अपने जमाने की बाते करना,कुश्ती और लड़ाई की सभी बाते बताना,किसी ने अगर शहर की एबी सी डी पढी तो सर से दो फिट ऊंचा लट्ठ सामने करना और कहना कि मेरे पास तो यही डिग्री है,इस डिग्री से कितने केश लड़ लिए है यह उन्हें ही पता है.अगर इस डिग्री से अधिक तुम्हारी है तो आजाओ सामने देखे कौन सी डिग्री जीतती या हारती है,कोइ भी पढ़ा लिखा या क़ानून को समझाने वाला व्यक्ति कन्नी काटने में ही अपनी भलाई समझता था.
पढ़ने लिखने में समझने में “समाजवाद” बहुत अच्छा शब्द लगता है,समाज में सभी बराबर,किसी को किसी प्रकार का दुःख नहीं किसी प्रकार की मान अपमान कमाई धमाई की चिंता नहीं कौन किस रूप में रह रहा है किसी को किसी से मतलब नहीं है अपनी अपनी मेहनत करो अपनी कमाई के अनुसार जीवन को निकालो सभी के लिए हित बराबर सभी के लिए अवसर बराबर सभी एक जैसे देखे जायेंगे कौन बड़ा कौन छोटा कोइ लेना देना नहीं,यानी एक ही नजर से देखे जाना इस समाजवाद शब्द का अर्थ समझ में आता था.
एक बात और भी समझ में आ गयी कि अधिक पढ़ने लिखने के बाद संसार के सभी क़ानून पता चल जाते है,कौन क्या करता है सभी की खबर राखी जाती है,कल और आज के अखबार की खबर में कितना अंतर है यह भी पढ़ने लिखने के बाद पता चलने लगता है.एक से अधिक भाषा सीखने के बाद बात और भी आगे बढ़ जाती है किस देश में क्या हो रहा है कौन कितनी अच्छी तरह से किसे पागल बना सकता है कौन किस चालाकी से किस प्रकार से अधिक से अधिक धन कमा सकता है इस बात का भी पता चल जाता है लेकिन कानूनी डर के कारण कोइ भी ऐसा वैसा काम नहीं किया जा सकता है,कारण डर लगता है कि अमुक काम को करने के बाद अमुक धारा लग जायेगी और अमुक स्थान से अमुक प्रकार से बेइज्जती हो जायेगी कौन क्या कहेगा,पढ़ लिखने के बाद एक बात और भी होती है कि दिमाग को अधिक प्रयोग करने पर शरीर जबाब दे जाता है और जब शरीर में ताकत नहीं होती है तो किसी प्रकार के गलत काम को करने के बाद पुलिस या मजबूत लोगो की एक भी वार अच्छी तरह से लग गयी तो आजीवन पंगु बनाकर भी रहना पड़ सकता है.इसके अलावा भी एक बात देखी जाती है कि जितना पढाई में आगे चलना होता है उतना ही समाज से दूर होना भी हो जाता है कारण जो पढाई की है उसके लिए वही क्षेत्र मिलता है तथा उसी प्रकार के लोग मिलते है और लोग भी ऐसे मिलते है कि अपनी अपनी चलाने के चक्कर में अक्सर टांग खीचने वाले ही मिलते है कोइ भी किसी से मानसिक प्रेम तो रख ही नहीं सकता है भले ही आमने सामने होने पर खाना पूरी के लिए राम जुहार कर ली जाए,लेकिन सामने से हटते ही कितने रूप से गालिया मन ही मन देनी होती है यह बात अकेले बैठ कर ही समझ में आती है.एक से अधिक चालाक जब एक ही काम को करने के लिए मिल जाते है तो और भी बड़ी बात सामने आजाती है,एक दूसरे के आगे बढ़ने में कितनी तरह से अवरोध पैदा कर दिए जाते है कि कोइ भी अपनी बात को खुल कर बता भी नहीं सकता है,और इस बात को लोग अपने तक सीमित रखने के लिए अपने एक गोपनीय कक्ष का निर्माण करवाते है जहां घर की पत्नी या बच्चे तक भी नहीं जा पाते है.रखने को तो घर के बाहर चौकीदार रखना पड़ता है लेकिन उस चौकीदार की भी चौकीदारी करनी पड़ती है कि कब वह सो रहा है और कब वह जग रहा है.
इस पढ़े लिखे के चक्कर में लोग अलग अलग शहरों में जाकर बस जाते है कोइ अपना नहीं होता है इसलिए संगठित होकर रहने की जरूरत पड़ती ही नहीं है,एकांत में अपनी खुद की सुरक्षा के साधन जुटाकर रहना पड़ता है,और इसका परिणाम यह होता है कि बगल में मातम होता है और पास में शहनाई बज रही होती है,किसी से किसी को कोइ लेना देना नहीं होता है,केवल एक ही नजर होती है कि फलां ने कहाँ से इतना कमा लिया और कैसे कमा लिया,उसका बच्चा आगे कैसे निकल गया उनका बच्चा कैसे नहीं निकल पाया.यही नहीं जान पहिचान वाले होते नहीं है केवल दूर दूर के रहने वाले होते है,जब कोइ सामाजिकता नहीं होती है तो एक बात तो सभी में पायी जाती है वह होती है आदमी और औरत की जान पहिचान,कौन कितनी शान से निकलता है कितने अच्छे कपडे पहिनता है कितनी अच्छी गाडी में आता जाता है कैसा रहन सहन है कितनी बड़ी कोठी है कितना बड़ा बंगला है कितनी आय के साधन है और इस बात से घर के मुखिया भले ही आपस में परिचय नहीं रखे लेकिन जवानी की सीढी पर पैर रखने वाले जरूर एक दूसरे को जानने पहिचानने लगते है,एक दूसरे को पहले इशारों में देखा जाएगा फिर मोबाइल से सम्बन्ध बनाए जायेंगे फिर इंटरनेट और इसी प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाएगा और एक दिन ऐसा भी आयेगा जब दोनों एक दूसरे के साथ या तो जीवन की लम्बी यात्रा पर निकल जायेंगे या कुछ दिन की रंगरेलिया मनाकर पिकनिक के नाम से वापस आजायेंगे.उस समय में अगर कोइ बाहर का आदमी आकर घर पर हमला बोलता है तो पडौसी का कर्तव्य हो जाता है कि वह अपनी खिड़की दरवाजे आने जाने के सभी साधन बंद कर दे और वह चुपचाप एकांत में अपनी सुरक्षा के लिए कोइ कदम सोचने लगे,सहायता नहीं करनी होती है कारण अगर सहायता कर दी जाती है तो हो सकता है कि जो पिट रहा है वह बच जाए और जो सहायता करने के लिए गया है पिट कर वापस आजाये क़ानून से जब गुहार की जाए तो हो सकता है जो पिट रहा था और जिसे बचाने के लिए गए थे वह तुम्हारे खिलाफ ही बयान दे दे.यह कारण भी होता है दूसरे एक कारण और भी होता है कि जब पास पास में घर बना होगा तो कोइ न कोइ कारण अच्छा बुरा बन ही जाएगा,हो सकता है कि एक का बाप मर जाए और दूसरा उसी दिन अपनी छत को डालने के लिए रोडी पत्थर दरवाजे के सामने बिछा दे,एजी कहा सूनी तो होनी नहीं है लेकिन मन के अन्दर के भेद तो पैदा हो ही गया कि हमारे बाप के मरने के बाद इसने अगर रोडी पत्थर डाले है तो इसकी लड़की शादी होते ही घर का कूदा करकट तो सड़क पर डालना ही है यह नहीं हो पाया तो घर के सामने की सीवर लाइन ही खुलवा देनी है नहीं तो कोइ कथा भागवत का प्रोग्राम ही चला देना है.यानी जितने अधिक पढ़ गए उतने ही समाज से दूर हो गए,यह बात समाज+आवाद की जगह पर हो गया समाज+बरबाद.
पिता ने मजदूरी की पुत्र भी मजदूरी में चले गए,स्कूल में नेताजी जैसे मास्टर मिल गए तो फिर तो एक ही काम बचा था वह था खेती करना पशुपालन करना,मिट्टी खोदना,मिट्टी वाले काम करना,ऐसे काम के लिए एक से तो काम होना नहीं है,झख मारकर इकट्ठा रहना पडेगा,पिता के साथ भी और भाई के साथ भी एक दूसरे की सहायता के लिए रिश्तेदार भी साथ में रहने लगेंगे.इकट्ठे रहना एक साथ खाना सोना हगना मूतना काम करना और शरीर की मजबूती का भी ख्याल रखना कि खेत खलिहान जानवरों के लिए शरीर में जान की भी जरूरत है,साथ में जब एक साथ एक ही प्रकार के काम किये जायेंगे तो एक दूसरे का सहयोग तो देखने को मिलेगा ही.इस बात में समाजवाद की स्थिति सही रूप से देखने को मिलती है अगर एक घर में गमी हो गयी तो दूसरे घर में भी गमी को मनाया जाएगा एक घर में कोइ खुशी हो गयी तो दूसरे घर में भी खुसी का माहौल बन जाएगा.संगठन में ही शक्ति है,संगठन मजदूर में ही देखने को मिलता है,मजदूर आदमी को जरूरत नहीं पड़ती है कि वह किसी प्रकार के कानूनी लफड़े का सामना करे वह खुद की पंचायत खुद में ही कर लेता है,एक बिरादरी के सामने अगर कोइ दूसरी बिरादरी भिड़ने के लिए सामने आती है तो सभी एक साथ इकट्ठा हो जायेंगे.यहाँ पर स्थिति को संख्या के आधार पर तौल कर देखा जाएगा और जिसकी संख्या अधिक होगी वही अपनी साख जमा कर चलने लगेगा.
जब हम आजाद हुए थे तो मात्र तीस करोड़ थे,आज पांच गुने हो गए है,और क़ानून जो तीस करोड़ गाँव के लोगो के लिए बनाए गए थे वही आज भी है.आज भी जो लोग अपने समुदाय को बनाकर रह रहे है वह किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाते जा रहे है केवल पढ़े लिखे लोग ही उनके लिए अपनी टीका टिप्पड़ी तो करते है लेकिन सामने जाकर भिड़ने की ताकत नहीं है,पुलिस सेना भी उन्ही की बजाने लगती है,जिनके पास बाहुबल होता है.बाहुबल से धन बल और धन बल से बाहुवल इकट्ठा करने की होड़ से ही समाजवाद का सत्यानाश हो रहा है.आज ग्रामीण क्षेत्र का आदमी एक साथ अभी भी है कितना ही शिक्षा उनके घर के लोग प्राप्त कर ले लेकिन अगर वह अपने पीछे अपने घर जाते है तो उन्हें अपनी जाती बिरादरी की ही बजानी पड़ेगी उनके अन्दर कोइ क़ानून या कोइ एनी प्रकार का भेद समझ में ही नहीं आयेगा,लेकिन वही पढ़ा लिखा व्यक्ति जब शाहर में प्रवेश करेगा तो उसके समाने सामान बनाने का भाव पैदा होने लगेगा वह कहने को अपने को बचाने के लिए अपनी रक्षा के लिए झूठे मन से ही सही एक दूसरे के प्रति सहानुभूति तो दिखाएगा लेकिन वह किसी प्रकार से जातीयता को नहीं दिखा पायेगा.
इस बात के लिए एक बात और भी देखी जा सकती है कि शहर को एक विशेष समुदाय ने अपने कब्जे में किया हुआ और ग्रामीण क्षेत्र को एनी समुदाय ने अपने कब्जे में लिया हुआ है,इन दोनों को अपने कब्जे में करने के लिए दो समुदाय और भी अपनी अपनी राजनेति को सामने रख कर चल रहे है.
हिन्दू अपनी सामाजिकता से केवल इसलिए ही भटक गया है कि वह अपने ही आदमी को नीचा दिखाने की कोशिश में है,इस काम के लिए भी एक समुदाय विशेष अपनी चाल चलने में कामयाब हो गया है,एक समुदाय अपने इस अहम् को लेकर चल रहा है कि वह पूज्यनीय है तो दूसरा इस बात से दूर हो रहा है कि वह नीच है बीच के दोनों समुदाय न इधर के रहे है और न ही उधर के रहे है.इस प्रकार से हिन्दू समाज में चार समुदाय चार प्रकार से अपने को विभाजित करने के बाद एक दूसरे से अलग हो गए है.
मुसलमान एक ही धारणा से एकत्रित है वह है धार्मिक भावना,लेकिन इसमे भी एक विशेष समुदाय ने आपस में मतभेद पैदा कर दिया है धर्म के अन्दर भी दो फाड़ डाल दिए है.लेकिन जहां भी यह समुदाय है अपनी उपस्थिति को लगातार आगे बढाने में प्रयास कर रहा है,चाहे वह रोजो का समय हो या ईद का समय हो रोजाना की पाच बार की नमाज हो या एक दूसरे के प्रीत सुख दुःख की बात हो,जहां पर लोग अधिक संख्या में नहीं है वे अपने अनुसार ही रह रहे है,वक्त पर झुकाने की और खुद झुकने की कला इनके अन्दर है इसलिए विश्व पटल पर इनकी एकता लगातार बढ़ती जा रही है.हिन्दू और मुस्लिम समुदाय को दूर करने के बाद एक दुसरे पर राज करने के लिए राजनीतिक लोगो ने भी अहम् भूमिका को बल दिया है.पिछले समय में भी दोनों समुदायों के मुखिया लोगो ने अपने अपने अनुसार समुदाय को बल देने के लिए धार्मिक भावनाओं को आहात करने और दूर दूर करने के लिए अपनी महती चालो को चलना जारी रखा है.कभी मंदिर तोड़ कर कभी मस्जिद तोड़ कर कभी एक दूसरे की स्त्रियों को आहात करने के कारण और कभी जमीनी लड़ाइयों को जारी रखने के कारणों को पैदा करने के बाद यह स्थिति लगातार जारी है.जनसंख्या पर भी बढ़ावा देने के लिए और जीवन यापन में कुछ भी खा लेने से या कुछ भी कर लेने से तथा किसी भी सम या विषम परिस्थिति में रह लेने की धारणा मुस्लिम समुदाय में ही मिली है,इस समुदाय को और अधिक बढाने के लिए भारत में ही कई क़ानून इनके हित के लिए बनाए गए है जैसे हिन्दू पर जनसंख्या को सीमित रखने का शिकंजा कशा गया है जबकि मुसलमान को इससे दूर ही रखा गया है,हिन्दू के लिए विवाह अधिनियम और दहेज़ प्रथा से पूर्ण करने के बाद आजीवन न्याय के लिए भटकने के लिए मजबूर किया गया है जबकि इस समुदाय में यह बात कोशो दूर लगती है.
अक्सर देखा जाता है कि दो लोगो में कम्पटीशन पैदा करने के लिए एक को बढ़ावा दिया जाता है दूसरे को नीचा दिखाया जाता है लेकिन जब किसी को नीचा दिखाया जाता है तो वह अंदरूनी रूप से अपने को आगे बढाने की कोशिश करता है.वह चाहता है कि वह जो कर रहा है वह हर किसी के सामने नहीं आये अगर हर किसी के सामने आजाता है तो हो सकता है उसका भेद खुल जाए.भेद खुलने के बाद वह कुछ भी कर पाने में असमर्थ हो जाएगा.अधिक शिक्षा का होना और शिक्षा में भी अंग्रेजियत का होना अक्सर समाज से दूर जाने की बात मिलती है,समाज वाद वही प्रकट हो सकता है जहां लोग आपस में मिलकर चलते है और एक दूसरे की सोच कर चलते है,उन्हें जाती से अधिक मानवीयता से प्यार होता है उन्हें शिक्षा और संस्कृति से कोइ लेना देना नहीं होता है,यह बात भारत में कम से कम तब तक तो संभव नहीं है जब तक यह भाव कि अमुक हिन्दू है और अमुक मुसलमान है का भाव बना रहेगा.
समुदाय को जोड़ने के लिए सामान क़ानून की बात होनी चाहिए,क़ानून समुदाय के अनुसार नहीं बनाने चाहिए,समुदाय केवल इकट्ठे रहने का रूप है किसी जाती पांति भेद भाव से दूर है,भारतीयता की भावना पनप जाए,एक ही जाती लिखी जाए कि वह भारतीय है,हर समुदाय अपनी अपनी कथनी को प्रसारित करने के कारणों से दूर रहे,क़ानून का रूप भी एक ही प्रकार की भावना को लेकर चले तो भारत की तरक्की निश्चित है अन्यथा आज मुसलमान बढ़ जाएगा फिर एक के शासन करने के बाद दूसरा अपनी पैठ बनाने की कोशिश करेगा मार काट होगी मनुष्य ही मनुष्य को समाप्त करने के लिए आगे आयेगा,तो जो बचेगा वही शासन कर पायेगा.यानी जिसकी लाठी होगी भैंस वही ले जाएगा.समुदाय का सहारा लेकर कितना अनर्थ हो रहा है इस बात को अगर बड़े रूप से सोचा जाए तो समुदाय का बढ़ावा देने वाली राजनीति से नफ़रत हो जायेगी.पहले हिन्दू समुदाय को पंडित बनिया राजपूत और हरिजन की आड़ में काट दिया गया,फिर राजा और महाराजा की आड़ लेकर काट दिया गया,धर्म के लिए भी एक समुदाय का एक देवता बनाकर बौध जैन साकार निराकार देवी देवताओं के रूप में काट दिया गया,यह सब हुआ तो लोगो ने पंडित बनाकर राजनीति की अपनी साख बचाने के लिए और बाकी की तीन जातियों से दूर रहने के लिए उन्होंने मुसलमान को समर्थन देना शुरू कर दिया,इधर जब बनिया और राजपूत तथा पंडित की बाते देखी तो हरिजन को दूर करने के लिए प्रांतीय रूप से अलग ही राजनीति चलने लगी और राजनीति करने के बाद अपना उल्लू सीधा करने के बाद दूर हो गए,इधर जब काम करने वाले लोगो के दिमाग में आया तो उन्होंने अपने को सर्वधार्मी ही बना डाला और अपने दिमाग में केवल यही बात रखकर कि धर्म कोइ भी हो समुदाय को समाजवाद का नाम देकर आगे बढ़ाना है,इस कार्य में अपनी और मुसलमानी समाजस्य को बैठाया और हितैषी के रूप में दिखाकर राजनीति में सफलता हासिल कर ली.आगे का खेल इन्हें भी पता नहीं है जो लोग आज अपने स्वार्थ के लिए साथ दे सकते है वे ही कल अपनी औकात को दिखाकर अपने को शासन के साथ लाकर अपनी जड़े खुद जमाकर भूचाल भी खडा कर सकते है.
सीधा सा अर्थ है कि हिन्दू कभी राज नहीं कर पायेगा,कुछ समय के लिए कर भी ले तो कोइ बात नहीं है लेकिन वह खुद की ही फूट का परिणाम आज नहीं तो कल जरूर प्राप्त करेगा.भारत की छवि एक दिन समझ में आ रही है कि वह पाकिस्तान बने न बने लेकिन वह हिन्दुस्तान जरूर बन जाएगा.
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