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विपक्ष की भूमिका

Shilpjyoti by Astrobhadauria
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bjpbspचुनावी हारजीत का परिणाम पक्ष विपक्ष की उत्त्पत्ति के लिये मान्य है। पक्ष बनता है जनता के हित के लिये अपने अनुसार किये गये वायदे को पूरा करने की कोशिश करता है,विपक्ष अपनी बात को तब शुरु करता है जब उसे लगता है कि जो कार्य जनता के लिये शुरु किया जा रहा है वह किस प्रकार से किन किन कारको से अच्छा है या बुरा है,और जो भी बुराइया होती है उन्हे दूर करने के बाद पक्ष और विपक्ष की सहमति होती है जनता के कार्य शुरु कर दिये जाते है। यह बत तब अच्छी तरह से लागू होती है जहां दोनो ही सशक्त हों,अगर एक पक्ष सशक्त रह जाता है तो या तो जनता के साथ अन्याय हो जाता है या न्याय के लिये जनता लटकी रह जाती है।

भारत की आजादी हुयी थी और कांग्रेस का राज शुरु हो गया था तब जनसंघ की भूमिका मे विपक्ष सामने था। इस तरह से जो भी कार्य जनहित के लिये किये जाते थे,पक्ष और विपक्ष एक साथ बैठ कर संविधान के अनुसार अपनी अपनी राय दिया करते थे और जो बात हकीकत मे जनता के हित की होती ही मान ली जाती थी। धीरे धीरे यह भूमिका जातिवाद पर चलती चली गयी और हिन्दू मुसलमान,सिक्ख,ईशाई आदि समुदायों के लिये अलग अलग पार्टिया अपना अपना काम करने लगीं। कांग्रेस जो पहले से ही मुसलमानो की हितैषी थी बाद मे भी वह उन जातियों को अपने साथ लेकर चलने लगी जो हिन्दू जाति मे सर्वोच्च रूप से देखी जाती थी,पंडित भी इस पार्टी मे चले गये और अपनी अपनी राजनीति से लोगो के लिये अपने अपने अनुसार कार्य करने लग गये। वही जनसंघ भाजपा मे परिवर्तित हो गया और वह मुख्य पक्ष और विपक्ष की भूमिका मे अपने कार्यों को बताने के लिये शुरु हो गया। कुछ समय बाद जब दोनो पार्टियों मे भ्रष्टाचार की सीमाये शुरु हो गयी तो दोनो ही एक दूसरे पर आक्षेप विक्षेप लगाने लग गये,और जो भी कार्य जनता के लिये किये जाते थे उनके अन्दर अटकाव आ जाता या जनता के कार्य अपने स्थान पर पक्ष या विपक्ष की हठधर्मी से रुकने लगे। जब कार्य रुकने लगे तो दोनो पार्टियों के अन्दर कोई समझौता हुआ कि तुम करो हम नही बोलेंगे और जो भी हमारा हिस्सा है हमारे पास पहुंच जाना चाहिये,मेरे ख्याल से इस समझौते से कोई भी सरकार बनती अपनी अपनी योजना से अपने अपने कार्यों को करने के लिये स्वतंत्र हो जाती और जो भी हल्का फ़ुल्का प्रदर्शन जनता को दिखाने के लिये किया जाता उसे किसी न किसी कारण से गुप्त समझौते से दूर कर लिया जाता और जब कांग्रेस की सरकार बनती थी तो भाजपा चुप रहती थी तथा जब भाजपा की सरकार बनती थी तब कांग्रेस चुप रह जाती थी। परिणाम मे विपक्ष अपनी भूमिका को सही रूप से नही निभा पाता था और जो भी कानून बनता या जो भी योजना बनती थी वह बिना किसी रुकावट के चलती रहती,दोनो ही पक्ष अपने अपने अनुसार अपना अपना लाभ लिया करते थे।

धीरे धीरे जनता के अन्दर समझ आने लग गयी उसे समझ मे आने लगा कि दोनो ही पार्टी देखने मे अलग अलग है लेकिन दोनो का ही एक ही काम है तो जनता ने अपने अनुसार जो पार्टिया रीजनल रूप से थी उन्हे समर्थन देना शुरु कर दिया। फ़लस्वरूप कई पार्टिया मिलकर राजतंत्र मे शामिल हो गयी और एक बार ऐसा भी हो गया कि कोई एक पार्टी अपनी सरकार बना ही नही सकती है इस बात को और भी अधिक हवा जब मिली जब एक पार्टी कोई भी अपनी सीट को लेकर बैठ गयी,और उस पार्टी के बिना सरकार नही बनती है तो उस पार्टी को बहुत अधिक कीमत देकर तथा राज करने का समझौता देकर साथ रखा जाने लगा इस प्रकार से रीजनल पार्टी की हैसियत बढती गयी और आज देखा जाये तो जितनी जातिया है उतनी ही पार्टिया अपने अपने अनुसार काम कर रही है। सभी पार्टिया मिलकर काम करने के लिये ग्रुप राज्य का चलना शुरु हो गया है कोई किसी से कुछ कह भी नही सकता है और कहता है तो राज खत्म होने की नौबत आजाती है। भाजपा भी अपने स्थान पर कमजोर होकर कार्य कर रही है और कांग्रेस भी अपने स्थान पर रहकर कार्य कर रही है फ़ायदा उन्ही को हो रहा है जो अपने अनुसार समय का फ़ायदा उठाकर रीजनल रूप मे काम कर रहे है।

जैसे ही कोई काम करने के लिये भले ही पक्ष की पार्टी अपने प्रभाव को दर्शाना चाहती है वह कार्य भी अन्य रीजनल पार्टियों के विरोध के कारण या तो लागू नही हो पाते है या उन्हे करने से मानस ही बदल दिया जाता है। अगर भाजपा अपने विरोध को प्रदर्शित भी करे तो कैसे करे और किससे करे ? अभी पिछले समय से रेल बजट को ही देखा जाये तो सरकार ने रेल बजट को प्रभावी किया और उसी सरकार के एक रीजनल घटक दल तृणमूल ने अपने द्वारा रोक लगाकर अपनी मानो को मनवा ही लिया बल्कि खुद के ही मंत्री को सीट से नीचे उतारकर जनता के सामने हमेशा के लिये छवि भी खराब कर दी। इस स्थान पर कोई भी विरोधी पार्टी अपना काम नही कर सकती है,भले ही वह भाजपा ही क्यों न हो.भाजपा केवल अपने घटको से केवल विरोध को प्रदर्शित कर सकती है तो केवल अपने क्षेत्र से सम्बन्धित लोगो से ही जैसे वर्तमान मे सर्राफ़ा व्यवसाय अधिक टेक्स के कारण लोगो ने बन्द कर रखा है इस कारण मे किसी भी राज्य मे भाजपा का मुख्य स्तोत्र व्यवसायी वर्ग अपनी नीतियों को प्रदर्शित कर रहा है यह विरोध का रास्ता सीधे संसद मे नही होकर जनता के द्वारा प्रदर्शन के लिये किया जा रहा है।

राष्ट्रीय पार्टिया अब किनारे पर है,उन्हे आगे जाने का रास्ता अब मिलना मुश्किल है,अन्ना के आंदोलन के बाद एक प्रभाव तो समझ मे आया है कि लोगों ने भाजपा और कांग्रेस दोनो से ही अपना पल्ला झाडना शुरु कर दिया है,भले ही वह कितने अच्छे काम करने के बाद जगह बनाने मे सफ़ल हुयी थी लेकिन उन जगहो पर केवल अपने अहम के कारण और जनता के साथ अपनी मनमानी करने के कारण ही यह सब देखने को मिला है। यूपी के चुनाव का परिणाम भी इसी बात को बताता है और आने वाले समय मे लोकसभा के चुनाव मे भी यही बात देखने को मिलेगी। पिछले समय मे भ्रष्टाचार के मामले मे हो सकता है कि कुछ सीटे भाजपा को मिल जाये और कांग्रेस अपना विपक्ष लेकर बैठ जाये लेकिन भाजपा भी अगर अपनी हिन्दूवादी नीति पर चलती है और मुसलमान को साथ लेकर नही चलती है तो उसे भी अपना पक्ष या विपक्ष बनाना भारी पड सकता है।

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