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घर से कब्रिस्तान तक

Shilpjyoti by Astrobhadauria
Shilpjyoti by Astrobhadauria
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कहने को तो सभी खुले है लेकिन हकीकत मे देखा जाये तो मुझे तो कोई खुला नही दिखाई दे रहा है। कोई अपने घर मे बन्धा है कोई बाहर बन्धा है कोई मर्यादा मे कोई कानून मे कोई शिक्षा मे कोई तन मे कोई धन मे कोई मन से ही बन्धा है। एक का भी नाम नही मिलता है जो हकीकत मे खुला घूमता है और जो भी खुला घूमता है उसे लोग या तो पागल की उपाधि देते है या भिखारी की उपाधि देकर विदा कर देते है,इसके साथ ही जंगलो मे बचे खुचे जानवर खुले है या तो वे इन्सान से डरते है या इन्सान उनसे डरता है रही कीडो मकोडो की बात वह तो हमेशा से ही खुले रहे है और खुले घूमते है लेकिन कब परलोक सिधार जाये किसी को पता नही होता है। जो बन्धा वह अपने अपने बन्धन से दुखी है,कुछ नही तो भोजन से दुखी है और कुछ नही तो अपने किये गये कामो से दुखी है,जब बन्धन लेकर आये हो तो बन्धा तो रहना ही पडेगा। मुक्त होने का विचार मन मे आते ही तारे दिखाई देने लगते है,अक्समात ही माता की ममता सामने आजाती है पिता का फ़र्ज सामने आजाता है भाई बहिन की मासूमियत याद आने लगती है पत्नी या पति है तो उसके लिये कई प्रकार के भाव आने लगते है बच्चे है तो उनके पालन पोषण का ध्यान आने लगता है,कुछ नही तो खुद की इज्जत की चिन्ता सामने आने लगती है। बच कर कहाँ जा सकते हो,कारण बचने का कोई रास्ता ही नही छोडा है,अगर आवारा हो जाते तो समाज की मर्यादा ले डूबेगी,अगर बाहर जाते हो तो देश की सीमा बिना पासपोर्ट के नही जाने देगी,कारण देश से भी बन्धे हो,मुक्त होकर विचरण करना और फ़िर भी बन्धे होना यह बात कुछ समझ मे नही आयी। कई बार लोग कहते है कि हम अपने मन की मर्जी के मालिक है,वे लोग सरासर झूठ बोलते है,अगर मन की मर्जी के मालिक होते तो वे कहने के लिये सामने ही नही होते,किसी गली मे जंगल मे भटकते दिखाई दे रहे होते ! वास्तव मे लोग अपने शरीर से ही बन्धे है जब शरीर की चिन्ता नही होती तो बन्धे हुये दिखाई नही दे रहे होते। माता बच्चे से बन्धी है,अगर वह बच्चे को खुला छोड देती है तो कोई भी कुत्ता बिल्ली उठाकर ले जायेगा,क्या होगा उस मासूम का जिसे चलना फ़िरना नही आता है कहना भी नही आता है,वाह रे मनुष्य कुछ भी बिसात नही है तेरी फ़िर भी अपने को बलवान समझता है। एक जानवर का बच्चा पैदा होने के बाद ही नदी मे तैरने लगता है और मनुष्य अपने जीवन के बारह तेरह साल मे यह नही समझ पाता है कि तैरना होता क्या है ? जो लोग सिखाते है वही सीखता है अपनी तरफ़ से कभी सीखने की आदत भी तो नही डाली है ! अपने को कपडों मे बान्ध कर जेन्टल मैन की उपाधि मे मगन होने की बात भी मिलती है तो एक सुन्दर पत्नी के साथ चलने पर घमंड होता है कि दूसरो के पास नही है,कभी कार मे घूमने पर घमंड होता है कि दूसरो के पास नही है,कभी संगमरमर का महल बनाकर घमंड होता है कि दूसरो के पास नही है,अरे ! यह ही तो कारण है बन्धने का,जिन कपडो की सीमा मे बन्धा है वह तुम्हे बान्ध कर ले जा रहे है और तुम समझ रहे हो कि तुम उन्हे बान्ध कर जा रहे हो ! पता नही कहां से कीचड का थपेडा आये और कपडे जिन्हे तुम यह समझ कर बांधे जा रहे हो वह तुम्हे गन्दा कर जाये,जो लोग तुम्हे जेन्टल मैन समझ रहे थे वही तुम्हे गंदा कहना शुरु कर दें  ! जिस गाडी को तुम अपनी समझ कर उसमे बन्धे जा रहे हो वह पता नही निगाह के चूकते ही किसी खाई खड्ड मे लेजाकर गिरा दे और जिसे तुम समझ रहे हो कि वह तुम्हारी औकात मे बन्धी है वह तुम्हे सशरीर मुक्त कर दे ! जन्म के बाद इतने बडे नाखून भी नही है कि तुम अपनी रक्षा कर सको,सींग भी नही है जो मुकाबला कर सको,हाथ पैर मे इतनी जान नही है कि किसी बलवान जानवर से भिड सको,फ़िर कैसे कहते हो कि बन्धे नही हो।

एक समाज ने बान्ध दिया कि तुम हिन्दू हो मुसलमान हो ईसाई हो या कोई भी हो,लेकिन जब पैदा हुये थे तो कौन सा तमगा तुम्हारे माथे पर लगा था कि तुम वही हो जहां पैदा हुये हो,माता पिता के रसरंग मे तुम गर्भ मे आ गये,माता ने एक बच्चे की चाहत रखकर तुम्हे पैदा किया पाला पोषा बडा किया,एक पिता ने अपने फ़र्ज को पूरा करने के लिये तुम्हारी शिक्षा दीक्षा पूरी की और जब तुम अपनी समझ मे आ गये तो कहने लगे मै समर्थ हूँ ? कहने लगोगे कि यह तो सभी के साथ होता है ! अगर सभी के साथ होता है तो सभी के साथ मिलकर चलने मे शर्म आती है क्या ! क्यों अपने को समझते हो कि तुम बहुत बहादुर हो,और अपनी बहादुरी से उन्ही लोगो को सताने का मजा ले रहे हो जो बिलकुल तुम्हारी ही शक्ल के है ? अपने आप एक धर्म बना लिया और कहने लगे हम उस धर्म से सम्बन्धित है,तुम्हे पता है कि यह तुम्हारा सबसे बडा बन्धन है,इस बन्धन के चलते तुम्हारा नाम ही धर्म के अनुसार रख दिया गया,कभी राम तो कभी रहीम रख दिया गया कभी जार्ज तो कभी रज्जू रख दिया गया,और तुम्हे घमंड हो गया है कि जो नाम तुम्हारा रखा गया है वही तुम हो ? बंगाली भाषा मे भाई को बन्धु कहा गया है,यानी बन्धु बोला तो बन्धे रहो,और जैसा बोला जाये उसे सुनते रहो,जो कहा जाये उसे करते रहो,फ़िर कहां से खुले हो,सौ मे से निन्न्यानवे कहने को तो बन्धे है धर्म मे लेकिन वह इतना भूल गये है कि धर्म मे बन्धना केवल उतना ही सीमित है जितना एक आदमी दूसरे आदमी के साथ आदमी की जाति से बन्धा हुआ है। अगर कह दिया जाये कि अमुक धर्म तुम्हे पार लगा देगा लेकिन मैने तो आजतक किसी धर्म को पार लगाते नही देखा है,देखा है तो धर्म से ही आदमी डूबता दिखाई देता है। जो ईश्वर ने दिया है उसे भी बान्धने का काम कर रहे हो वह हिन्दुस्तान तुम्हारा यह पाकिस्तान हमारा ! अरे मूर्खो यह तो सोचो जब करोडो अरबो सालो से यह जमीन जैसी थी वैसी ही पडी है,इसकी सीमा तुमने अपने अपने समाज और धर्म के अनुसार बनायी है,कभी ईश्वर इन्हे बनाने नही आया,अगर ईश्वर ने ही बनाया होता तो वह तुम्हारे शरीर मे इतनी ताकत दे देता कि तुम अपनी मौत मर सकते थे और अपनी शक्ति से जिन्दा हो सकते थे ! जब बीमार होते हो तुम्हे पता होता है कि किस धर्म का डाक्टर तुम्हे ठीक करेगा ? जब मर जाते हो तो देखने आते हो कि कौन से धर्म के आदमी के द्वारा तुम्हारे शरीर की अन्तिम क्रिया की जा रही है ? जो भोजन खा रहे हो उसमे पता है कि अन्न का जो दाना है वह किस धर्म के आदमी ने पैदा किया है? जो कपडा पहिने बैठे हो उसका पता है कि किस धर्म के आदमी ने उसे बना है और सिलकर तुम्हे पहिनने को दिया है ? जिस मकान मे बैठे हो उसका पता है कि ईंट किसने बनाई थी सीमेन्ट किसने बनाया था सरिया किसने बनायी थी ? पानी जो पी रहे हो वह पता है किस धर्म के लोगो के बीच से गुजर कर तुम्हारे पास तक पहुंच रहा है ? जिस ग्लास मे पानी पी रहे हो वह पता है कि किस धर्म के आदमी ने उसे बनाया है ? जब कुछ नही पता है तो फ़िर कैसे कहते हो कि जो धर्म तुम लेकर चल रहे हो वह तुम्हारा ही है ? यह नही हो सकता है कि जिस धर्म को मान कर चल रहे हो वह भी किसी ने अपने मे बान्धने के लिये शुरु किया हो ! और चाहा हो कि जब तुम किसी भी कारण से वश मे नही आओगे तो माता पिता चाचा ताऊ आदि के मानने पर तुम भी मानने लगोगे,हो सकता है माता पिता ने अपने माता पिता के धर्म को अपनाया हो और उस समय मे माता पिता को शिक्षा देने के लिये कोई भी सामने नही आया हो,आज तुम सभी प्रकार से शिक्षित हो पूरी दुनिया के लोग तुम्हारे साथ है तुम अपने को किसी भी हद तक ले जा सकते हो,फ़िर यह बन्धन कैसा ? तोड दो यह जाति पांति धर्म देश परिवेश की जंजीरे और फ़्री हो जाओ,एक ही बन्धन मे बन्धो वह है इन्सानी बन्धन ! अकेले मे सोचना,जब एक बच्चे को पैदा करोगे,फ़िर उसके पालन पोषण मे वक्त को लगाओगे उसके बाद जब वह बडा हो जायेगा तो जैसे तुम किसी को मारने काटने की जुर्रत कर रहे हो वही जुर्रत और किसी ने तुम्हारे बच्चे के साथ की तो कितना बुरा लगेगा ? जिस बहिन बुआ बेटी की इज्जत की रक्षा करना तुम्हारे हाथ है वैसे ही सभी के पास वही कारण है,अगर कोई तुम्हारी तरह से ही तुम्हारी बहिन बुआ बेटी को देखने समझने लगे तो तुम्हे कैसा लगेगा ?

इन्ही बन्धनो की आड लेकर आज राजनीति आगे बढ रही है जरा जरा से लोग अपनी राजनीति से हमारे द्वारा किये गये परिश्रम को खाये जा रहे है,जो फ़ल हमारी संतान को मिलता और वह पढ लिख कर शरीर को बनाकर आगे की दुनिया मे अपना सहयोग देती उसी सन्तान का पेट काटकर इन राजनीतिक लोगो को दिये जा रहे हो,जैसे ही राजनीतिक लोगो को पता लगेगा कि तुम धर्म और बेकार की जातिवाद जैसी मर्यादा से बाहर आ गये हो वह अपनी करतूतो को करना बन्द कर देंगे और तुम्हारे साथ मिलकर उसी तरह से काम करने लगेंगे जैसे तुम करते हो।

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