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परछाइयाँ

Shilpjyoti by Astrobhadauria
Shilpjyoti by Astrobhadauria
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सामने जब रास्ता दिखाई देता है तो वह पीछे हो जाती है और जब सामने रास्ता नही दिखाई देता है तो वह आगे आजाती है। कभी दाहिने चलने लगती है और कभी बायें चलने लगती है,कभी कभी तो नीचे ही आजाती है,लेकिन ऊपर जाते कभी नही देखा,जब ऊपर आने का समय होता है तो वह या तो हमारा घर होता है या किसी प्रकार का आशियाना। पीछे चलने के कारण इतिहास दोहराने लगती है,आगे चलने पर पीछे के इतिहास का उदाहरण देकर चलने लगती है,जब दाहिने आजाती है तो लगता है कि जो हमारे पीछे होता रहा है वह ही हमारा सहायक है और जब बायें आजाती है तो लगता है कि हमारा इतिहास ही हमारा दुश्मन  है,लेकिन जब नीचे आती है तो लगता है इतिहास से ऊपर जाकर हमने कुछ किया है,लेकिन जब हमारे ऊपर होती है तो वह हमे लगता है कि हम कर कुछ नही रहे है लेकिन हमसे करवाया जा रहा है। जब किसी भूत देखने वाले के पास जाओ  और वह ऊपर है तो पता चलता है इसके ऊपर कोई छाया है और वह छाया जैसा चाहती है वैसा ही इसे करना पडता है,लेकिन अगल बगल चलने वाली को कोई नही कहता है कारण वह तो कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है हम रुक जाते है तो वह भी रुक जाती है और चलने लगते है तो चलने लगती है,अरे वाह इससे अधिक कोई सहायक तो भी नही है,जब हम भौतिक रूप मे है तो हमारे साथ है जब हम हवा के रूप मे या अद्रश्य होंगे तो इसका भी पता नही होगा कहां है कि नही ! कभी कभी तो पीछे आकर इतनी लम्बी हो जाती है कि देखने से ही डर लगने लगता है और जब आगे आकर उजियाले रास्ते पर अपनी सीमा लम्बे रूप मे बना लेती है तो लगता है कि हमसे बडा कोई नही है लेकिन जो हमे दिखाई देना चाहिये वह नही दिखाई देता है। और कोई नही यह अपनी अपनी परछाईं तो है,जो हमेशा साथ देने के लिये साथ साथ चलती है। कभी हमे इतिहास का वास्ता देकर डराने लगती है लेकिन कभी कभी जब हम अंधकार से निकल चुके होते है तो लगता है कि वह हमसे छोटी हो गयी है और हम बडे हो गये है। जितना अधिक प्रकाश हमारे पास होता है उतना ही छोटा रूप उसका सामने आता है जितना कम प्रकाश होता है उतनी ही अधिक बडी और भयंकर रूप मे वह दिखाई देने लगती है। जब प्रकाश रूपी रास्ता बताने के लिये पीछे लोग आजाते है तो वह हमे खुद के द्वारा देखकर समझ कर चलने से दूर कर देती है और जब वह प्रकाश रूपी रास्ता हमारे हमारे सामने आजाता है तो वह लम्बी होकर पीछे चली जाती है और हम किसी से पूंछना भी चाहे कि पीछे क्या है तो कोई बताने को तैयार नही होगा। ऐसा ही अगल बगल मे भी होता है सहायक होने के लिये कोई बताने के लिये तैयार इसलिये नही होता है कि दाहिने चलकर वह भरोसा देकर चलती है कि चलो न हमारे तुम्हारे साथ है और जब बायें आकर साथ चलने की बात करती है तो समझ मे आजाता है कि कोई न कोई बडा काम आगे किया जाना है और उस काम के बजह से अब फ़ुर्सत नही मिलने वाली है। सुबह से शाम तक पेड पौधे अपनी छोटी लम्बी और पतली परछाईं को देखकर सहमे रहते है कारण उनकी परछाईं मे कोई भी पनप नही पाता है चाहे वह फ़सल हो या कोई नया पनपने वाला पेड पौधा उसी प्रकार से जब कोई व्यक्ति अपनी परछाईं को देखकर चलने वाला होता है तो उसके आमने सामने कोई टिक नही पाता है चाहे वह खुद का ही मां जाया भाई या बहिन ही क्यों न हो,अपनी छाया को देखकर चलने वाले को केवल अपना स्वार्थ देखकर चलना कहा जाता है लेकिन जो अपनी परछाईं को नही देखता है दूसरे की परछाईं से रास्ता बताने की कोशिश करता है वह मान्य भी होता है और लोगो के लिये भला करने वाला भी होता है। सूर्य की रोशनी जैसी परछाइयां बनाने वाले लोग बहुत कम होते है उनकी छाया जिस पर भी पड जाती है उनका जीव्न धन्य हो जाता है। लेकिन  जब भी धरती और सूर्य के बीच मे चन्द्रमा आजाये और सूर्य की परछाईं को घेर कर अपनी काली छाया को देना शुरु कर दे ग्रहण तो लगना ही है। इसी प्रकार से जब पुत्र के गुड दोष छिपाने का काम मां करने लगे और पिता की आंखो से पुत्र की करतूतें छिपाई जाने लगे तो समझा जाना चाहिये कि पुत्र के ऊपर लगे ग्रहण को कोई हटा नही सकता है।

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