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अगर वास्तव मे उल्लू को नही देखा है तो फ़ोटो उल्लू की देखी ही होगी,बहु जानदार प्राणी है,जब सभी सो जाते है तभी अपने काम के लिये निकलता है दिन भर आराम से कोटर मे सोता रहता है.यानी रात को खाओ पियो दिन को आराम करो ! फ़िल्मी गाना तो है बहुत पहले बना दिया गया था लेकिन सोचने का मौका आज मिला.कहते है उल्लू का दिन बहुत मजबूत होता है अपने से पांच गुने प्राणी को पंजो से पकड कर चोंच से मार मार कर बेजान कर देता है और अपने कोटर मे रखकर बडे मजे से खुद और अपने परिवार की राशन पूर्ति करता है.आखिर मे एक बात और भी ध्यान मे आयी कि आजकल जिसे चोंच मारना आता है वह बहुत बडा दिलेर होता है वह आदमी ही क्यों न हो,अगर कोई नेता इस बात को पढ रहा है तो कृपया माफ़ करे,कारण आपकी बिरादरी का हर सदस्य हजारो उल्लुओं से भी भारी पडता है.
रात को बारह बजे की शिफ़्ट छूटती है कैब लाकर एक बजे घर छोडती है,खाना भी खाना है कपडे भी ठीक करने है कल के लिये प्रोग्राम भी बनाना है,टीवी भी देखना है अगर बीबी साथ मे काम करती है तो कोई बात नही,अन्यथा बीबी भी उसी प्रकार का बराबर का ढर्रा चलाती रहती है,उन्हे दिक्कत होती है जिनकी बीबी कहीं काम नही करती है,वह दिन भर घर के काम काज मे पिसती है फ़िर रात को पति की सेवा मे लगी रहती है उसका सोना नही हो पाता है,अक्सर इस माहौल की बीबियां तलाक जल्दी ले लेती है या कोई अपना काम करने के लिये स्वतंत्र रूप से काम करने लगती है,चार बजे सोने का माहौल बनता है और झपकी पहली लगी कि चिडियों की चिचियाहट सुनाई देने लगती है,कानो पर जो तकिया सिर के नीचे रखा था वह ऊपर आजाता है,ग्यारह बजे जब तीसरी चाय ठंडी हो चुकी होती है तो उठकर चाय पी जाती है जल्दी जल्दी तैयारी की जाती है,और फ़िर भाग लिया जाता है। टारगेट का नही पूरा होना ही सिरदर्द की जड होता है। कभी कभी अन्दाज से अधिक कमाई लेने के बाद बोस पार्टी भी देता है,आफ़िस में अधिक तनाव होने पर आफ़िस मे ही सोने के लिये एक हाल बना हुआ होता है खाने पीने का सामान भी आराम से मिल जाता है। जितनी चाबी भरी बोस ने उतना चले खिलौना ! अलावा चला कि फ़ौरन रिजायन मांग ली जायेगी,फ़िर प्लेसमेंट आफ़िस के चक्कर और जगह मिली तो ठीक है नही तो पुरानी कमाई को जोड कर रखा है तो ठीक है नही तो उधारी का कारण बनना शुरु हो जाता है। यह कारण इतना बढ जाता है कि पहले सैलरी पर कटने वाला टेक्स,फ़िर गाडी बैंक लोन मकान की किस्त सभी का भरना भरते भरते जो कुछ बचता है उसे ही प्रयोग मे लाना पडता है,साधारण दुकान से सामान खरीदा नही जा सकता है,कारण बदी शिक्षा ले ली है बडे घर की बीवी है तो जाना तो माल मे ही पडेगा,माल का हाल तो सभी को पता है जितना बिल है उतना ही देना होगा कम देने का रिवाज तो देखा ही नही जा सकता है अन्यथा पास मे खडा दूसरा कस्टमर ऐसे देखेगा जैसे कोई माल मे खरीददारी करने नही आये हों भीख मांगने के लिये आना हुआ हो,माल में किसी भी वस्तु का मोल भाव करना ही नही होता है,प्रिन्टेड रेट और डिस्काउंट,इन्ही दोनो बातो पर गाडी चलती है.क्या किया जाये माल मे लगे कांच और एसी की कीमत तो चुकानी ही पडेगी। दिन भर मशीन बना रहना मशीन से चिपके रहना मशीन से बोलते रहना मशीन में ही जिन्दगी को गुजारते रहना,यह आदमी को मशीन की तरह से ही बनाये दे रहा है कौन क्या कर रहा है कोई मतलब नही है धोखे से सन्तान पैदा हो गयी है,अपने हिसाब से घर वाले अगर साथ है तो ठीक है नही तो सीधे बोर्डिंग मे पढने के लिये बैठा दिया गया है,पढकर वह भी एक काठ के उल्लू की तरह बाहर आयेगी और जैसी चाबी उसके अन्दर डिग्री आदि से भरी गयी है उसी चाबी के अनुसार दिन मे सोने और रात को जागने का कार्यक्रम चालू हो जायेगा। दिन के पक्षी समुदाय मे रहना पसन्द करते है,रात के पक्षी या तो चमगादड की तरह से उल्टे दिन भर लटके रहते है या उल्लू की तरह से कोटर के अन्दर दिन की नींद पूरी कर रहे होते है.देश दुनिया घर बाहर रिस्तेदारी कहां क्या हो रहा है किसी को पता ही नही है,कभी कभी किसी खाली समय मे अगर कहीं आना जाना होता है तो ससुराल तक ही सीमित होता है अन्यथा कहीं आने जाने की फ़ुर्सत ही नही है,इससे अधिक और काठ के उल्लू की बिसात क्या दी जा सकती है.
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