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नाले की यथा-स्थिति

Shilpjyoti by Astrobhadauria
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महाराजा जय सिंह के नाम से जयपुर की बसावट हुयी थी पुराने जयपुर के निर्माण के समय नाहर गढ की पहाडी के नीचे हदबन्दी बनाकर जयपुर को चारदीवारी के अन्दर बसाया गया था,हवा महल गोविन्द देव जी का मन्दिर जलमहल गल्ता जी जन्तर मन्तर आदि का निर्माण करवाया गया था और मानसिंह टाउन हाल जलेब चौक आदि का निर्माण पुरानी कला के अनुरूप बनाया गया था। प्राचीन बसावट और बसावट की कला को तीन चौपडों सहित सभी ऐतिहासिक स्मार्क बनाकर सुरक्षित रखे गये है,तथा उनके निर्माण और रख रखाव पर हर आने वाली सरकार अपने अपने अनुसार खर्चा भी करती है और कभी अतिक्रमण हटाने के नाम से कभी पुरानी बिल्डिंग की रंगाई पुताई के नाम से कभी फ़्लड लाइटें आदि लगाकर प्राचीन सुन्दरता को अपने अनुरूप सुधारने का काम करती है इस बीच मे जो भी कारण आता है उसके लिये बडे आराम से कानूनी सहारा लेकर बिना यह देखे कि इस निर्माण और सजावट मे कितने लोगो की रिहायसी और वास्तविक जीवन की जीने की क्रिया आहत हो रही है उसे नजरंदाज करने के बाद बडी ही खूबशूरती से कानूनी जामा पहिनाकर हटाने मे संकोच नही किया जाता है।
पिछले समय में राजनीतिक कारणो से होने वाले समुदायिक हमलो से बचने के लिये और शहर मे जगह की कमी होने से लोगो ने पुराने शहर से पलायन शुरु कर दिया और जयपुर शहर के बाहरी क्षेत्र मे मिलने वाली जमीनो पर जैसी जिसकी हैसियत थी उसके अनुसार अपने परिवार के लिये सुरक्षित जगह बनाकर रहने लगा। अधिकतर लोगो के अन्दर राजनैतिक कारणो से फ़ैलने वाले सामुदायिक हमलो से और पारिवारिक सदस्यों के बढने से ही शहर से पलायन किया गया और पुराने शहर से बाहर जाकर जमीने खरीद कर रहने के लिये मकान बनाये जाने लगे। शहर के पूर्व मे पहाडी भाग होने से और शहर के उत्तर मे विश्वकर्मा फ़ैक्टरी ऐरिया होने से तथा शहर के दक्षिण में हवाई अड्डा होने से लोगो का रुझान रहने के लिये मकान बनाने का कम ही रहा। लेकिन जो भी साधारण और गरीब तबके के लोग थे जो रोजाना कमा कर खाने वाले लोग थे,उन्होने पुराने समय की जयपुर मैटल कम्पनी एन बीसी फ़ैक्टरी आदि मे काम करने के कारण पास ही रहने के लिये मकानो का निर्माण किया। सन १९८१ में अम्बाबाडी नामक स्थान पर बन्धे पुराने बान्ध में अधिक पानी भरने से पुराने जमाने की द्रव्यवती नदी जो केवल बरसाती पानी को ही ले जाकर मासी नदी मे और मासी नदी बनास नदी मे तथा बनास नदी चम्बल नदी में ले जाती है का नया नाम अमानीशाह नाला रख दिया गया और उस नाले मे फ़ैक्टरियों का गन्दा पानी तथा शहर से आने वाले पानी को बहाने के लिये काम मे लिया जाने लगा,इसी नाले के किनारे प्रेम पुरा सुशील पुरा चूहावास आदि ग्रामो की जमीने जहां पर पहले किसान अपनी अपनी जमीनो पर खेती करते थे अपने अनुसार बाजरा ग्वार आदि की फ़सलो के साथ शहर के लिये सब्जियों को भी उगाते थे,अक्समात पुराने अम्बाबाडी नामक स्थान से बान्ध के टूटने से पहले के भरे हुये पानी के साथ पतले से नाले की के किनारे की रेत बह गयी थी। लोगो के खेत बह गये जमीने बह गयी मिलट्री ऐरिया की जमीन और मकान भी बह गये थे। उस बान्ध को दुबारा से बना दिया गया और बहे हुये स्थानो को सरकार और अधिकारियों ने पुरानी स्थिति को नही देख कर नये आकार को बहाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया।
वर्तमान मे जयपुर के चालीस मील की ऐरिया मे जमीनो के भाव आसमान छू रहे है और उन जमीनो को खरीदने के लिये लोग अपने अपने अनुसार काम कर रहे है,सरकारी अधिकारियों और कानून से जुडे लोगो की नजर में अमानीशाह के नाले की जमीन जो शहर से भी नजदीक है रेलवे स्टेशन बाजार अस्पताल आदि से जुडी होने के कारण अमूल्य दिखाई देने लगी और अफ़सरो ने कोर्ट का जामा पहिनाकर गाजियाबाद की एक कम्पनी को नाले का सर्वे का काम सौंपा और सर्वे के अन्दर जो रिपोर्ट तैयार करने के लिये कहा उसके अन्दर वर्तमान मे नाले की पोजीशन आने वाले पच्चीस साल का तथा उसके बाद आने वाले सौ साल का अन्दाज लगाकर कि यहां बाढ आ सकती है बहाव क्षेत्र घोषित करवा दिया गया,कोर्ट ने भू माफ़िया की नजर को नही पहिचान कर राज्य सरकार की तर्ज पर जिनमे उच्चाधिकारी और वे लोग जो सरकार के साथ जुडे होने के बाद अमूल्य भू सम्पत्ति को प्राप्त करने का ख्वाब देख रहे है नाले की चौडाई को दो सौ फ़िट चौडा करने की आदेशात्मक कार्यवाही दे डाली और जयपुर विकास के लिये बनाये गये प्राधिकरण को आदेश दिया गया कि नाले के अन्दर जो भी बसावट है उसे साफ़ कर दिया जाय।
नाले की बसावट के समय में सन १९८१ की बाढ के बाद लोगो को पता था कि पानी कितना आगे आ सकता है और कैसे पानी निकल सकता है आदि कारण दिमाग मे रखकर ही अपने लिये आशियानो का निर्माण किया था। नाले के नाम से जमीन सस्ती भी थी और लोग अपनी मजदूरी और परिवार के खर्चे के बाद बचे धन या अपने लिये एक रहने का मकान रखने की चाहत से घर बनाने शुरु कर दिये और आज लगभग पचास हजार लोग अपने अपने लिये मकान बनाकर अमानीशाह नाले के किनारे की जमीनो मे जो काश्तकारों की थी उन्हे सोसाइटियों ने खरीद कर पट्टे काटकर घर बनाने के लिये बेच दिया गया था लोगो ने अपने अपने लिये मकान बनाकर रहना शुरु कर दिया बीच की जो भी सरकारे आयी अपने प्रयासो से जन प्रतिनिधियों ने लोगो के लिये पानी बिजली सडको आदि का बनवाना शुरु कर दिया और लोग अपने अपने अनुसार रहने लगे। पिछले कुछ समय से नगरीय शहरी विकास मंत्री ने अपनी हठधर्मी से अदालती आदेश लेकर नाले को साफ़ करने का बीडा उठा लिया और यह नही देख कर कि कैसे लोगो ने अपने पैसे से मेहनत की कमाई से अपने लिये आशियाने बनाये है सभी को उजाडने की साजिस रच ली और हमारे रक्षक कानून को ही आगे करने के बाद पहले तो जेबीसी मशीनो से नाले के किनारे बने मकानो को उखाडा जाने लगा और जब देखा कि मामला ठंडा होता जा रहा है तो अलग शहरो से विस्फ़ोट करने वाले विशेषज्ञो को बुलाकर दस दस मंजिला इमारते उडवाने का काम शुरु कर दिया।
जयपुर के लोगो के लिये वही कानून रक्षक की बजाय भक्षक बनने लगा जो लोगो की जान माल की सुरक्षा लोगो के रहने और लोगो के लिये न्याय देने के लिये माना जाता है वही कानून आज जयपुर के उन लोगो के लिये अभिशाप बनता जा रहा है जो लोग कानूनी रूप को नही जानते है और सरकार की मंशा को नही समझते है कि वह कानून से क्या करवा सकती है और उन्हे कैसे उखाड कर महंगी जमीन को अपने आगे के कानून बनाकर उन लोगो को दे सकती है जो लोग इस नाले की जमीन पर अपनी आंख लगाकर बैठे है कि कैसे यह खाली हो और उस जमीन को सरकार से प्राप्त करने के बाद अपने अपने अनुसार उस जमीन का उपयोग किया जाये। जयपुर के वे समाचार पत्र जिनन्हे लोगो ने सर आंखो पर रखकर उनके प्रति विश्वास किया वही समाचार पत्र आज सरकारी गुणगान करने से नही चूक रहे है और उन्हे यह नही दिखाई दे रहा है कि एक गरीब का झोपडा उखडेगा तो उसकी आह कहां तक जायेगी। कितने लोग भारतीय कानून से दूर होने की कोशिश करेंगे कितने लोगो की आजीवन की कमाई जो उन्होने अपने पेट काटकर भूखे रहकर मकान बनाने के लिये प्रयोग की है कैसे एक झटके से उन्हे उजाड कर बरबाद कर दिया जायेगा। बडे अरमानो से लगाई गयी एक एक ईंट किस प्रकार से उनके दिलो को कसक देगी इस बात का पता कानून को है जरूर लेकिन कानून की आंखो पर पट्टी बांध कर लोग किस प्रकार से कानून को गुमराह करने के बाद अपने हित के लिये क्या कर सकते है यह बात जयपुर के अमानीशाह नाले की जमीन पर सरकारी रूप से कानूनी जामा पहिना कर हडपने की क्रिया से समझा जा सकता है।
जयपुर मे और भी नाले है जैसे सी स्कीम का नाला महेश नगर का नाला करतार पुरा का नाला लेकिन सरकार और कानून को यथास्थिति रखने का नियम प्रयोग मे लाना है तो जयपुर की आधी जनसंख्या उजाडने से कोई नही रोक सकता है और अरबो रुपये की निर्माण सामग्री लोगो के खून पसीने की कमाई का बरबाद होना जरूरी है अगर यह कहा जाये कि नियम केवल अमानीशाह नाले के लिये है तो यह भी माना जा सकता है कि यह केवल भू-माफ़िया की चाल का एक हिस्सा है और यह चाल अगर सफ़ल हो जाती है तो अलावा नाले के किनारे रहने वाले नदी समुद्र आदि के किनारे रहने वाले लोग भारत मे गंगा यमुना आदि नदियों के किनारे वालो लोगो को भी समझनी चाहिये कानून अगर प्राचीन यथा स्थिति को कायम रखना चाहता है तो वह कानून सभी स्थानो पर प्रयोग मे लाना चाहिये एक ही स्थान पर कानून को प्रयोग मे लाने का उद्देश्य केवल एक ही माना जा सकता है कि कानून का सहारा लेकर भू-माफ़िया अपना हित साधन कर रहा है।

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